Sunday, January 18, 2015

टुकड़ा इक हवा का: गंगा सागर यात्रा

टुकड़ा इक हवा का: गंगा सागर यात्रा

गंगा सागर यात्रा

'सारे तीर्थ बार- बार गंगा सागर एक बार" अपनी पूरी यात्रा के दौरान मैं ऐसा कहने की वजह तलाशता रहा। जैसे- जैसे में सागर तट के करीब पहुंचता गया वैसे- वैसे मुझे इस सवाल का जवाब मिलता गया। मेरी इस जिज्ञासा को शांत करने में कुछ स्थानीय लोगों ने भी मदद की। हावड़ा से गंगासागर तक की यह यात्रा पहले पूरी तरह जल मार्ग के रास्ते ही तय की जाती थी, लेकिन अब यात्रा का बहुत थोड़ा हिस्सा ही स्टीमर के जरिए तय करना पड़ता है।
हावड़ा स्टेशन से गंगा सागर तट तक की यात्रा तीन हिस्सों में पूरी होती है। हावड़ा स्टेशन की दूसरी तरफ स्थित बस स्टैंड से लगातार बसें चलती हैं, जो करीब 100 किमी दूर पहले पड़ाव तक ले जाती हैं। टैक्सी भी उपलब्ध रहता है। बस से उतरने के बाद स्टीमर के जरिए मूरी गंगा नदी पार करनी पड़ती है। इसमें लगभग 40 मिनट का वक्त लगता है। नदी पार करने के बाद करीब 35 किमी का सफर फिर से बस से तय करना पड़ता है। यहां भी टैक्सी मिल जाती है। इस दूरी को तय करने में करीब एक घंटे का वक्त लगता है। कुल मिलाकर हावड़ा से यह सफर करीब 200 किमी का है। हावड़ा से सागर तट तक की यात्रा पूरी करने में करीब सात घंटे का वक्त लग जाता है, क्योंकि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जगह- जगह लोगों को रोका जाता है। पश्चिम बंगाल की बसों में यात्रा करने का एक अच्छा अनुभव यह रहा है कि वहां लोगों को ठूंसा नहीं जाती, प्राय: जितनी सीट उतने ही लोग बैठाए जाते हैं। कोई खुद से खड़े होकर यात्रा करने को राजी हो तो फिर कोई क्या कर सकता है।
गंगासागर यात्रा की असल परीक्षा सागर तट पर पहुंच कर शुरू होती है। वहां रहने के लिए होटल- लॉज जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। कुछ सरकारी रेस्ट हाउस हैं, लेकिन संभवत: आम आदमी वहां तक नहीं पहुंच सकता, क्योंकि वहां वीआईपी और वीवीआईपी की भरमार रहती है। ऐसे में आम लोगों के लिए वहां विभिन्न् संगठनों के शिविर ही रात काटने का सहारा हैं। इसके लिए बहुत जोड़तोड़ करना पड़ता है। वैसे मला स्थल पर लाखों लोग ऐसे भी मिलते हैं, जो ठंड को चुनौती देते हुए पूरी रात खुले आसमान के नीचे गुजारते हैं, लेकिन ऐसा करना खतरनाक है।
'गंगा सागर की यात्रा करने वालों के लिए एक सलाह यह है कि वे जाने से पहले, यात्रा कर चुके किसी व्यक्ति से जस्र्र बात कर लें।"