टुकड़ा इक हवा का
हवा के झोंके होते हैं अक्सर लेकिन मेरी खिड़की धूप के साथ-साथ हवा का भी एक टुकड़ा लाती है
Sunday, January 18, 2015
गंगा सागर यात्रा
'सारे तीर्थ बार- बार गंगा सागर एक बार" अपनी पूरी यात्रा के दौरान मैं ऐसा कहने की वजह तलाशता रहा। जैसे- जैसे में सागर तट के करीब पहुंचता गया वैसे- वैसे मुझे इस सवाल का जवाब मिलता गया। मेरी इस जिज्ञासा को शांत करने में कुछ स्थानीय लोगों ने भी मदद की। हावड़ा से गंगासागर तक की यह यात्रा पहले पूरी तरह जल मार्ग के रास्ते ही तय की जाती थी, लेकिन अब यात्रा का बहुत थोड़ा हिस्सा ही स्टीमर के जरिए तय करना पड़ता है।
हावड़ा स्टेशन से गंगा सागर तट तक की यात्रा तीन हिस्सों में पूरी होती है। हावड़ा स्टेशन की दूसरी तरफ स्थित बस स्टैंड से लगातार बसें चलती हैं, जो करीब 100 किमी दूर पहले पड़ाव तक ले जाती हैं। टैक्सी भी उपलब्ध रहता है। बस से उतरने के बाद स्टीमर के जरिए मूरी गंगा नदी पार करनी पड़ती है। इसमें लगभग 40 मिनट का वक्त लगता है। नदी पार करने के बाद करीब 35 किमी का सफर फिर से बस से तय करना पड़ता है। यहां भी टैक्सी मिल जाती है। इस दूरी को तय करने में करीब एक घंटे का वक्त लगता है। कुल मिलाकर हावड़ा से यह सफर करीब 200 किमी का है। हावड़ा से सागर तट तक की यात्रा पूरी करने में करीब सात घंटे का वक्त लग जाता है, क्योंकि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जगह- जगह लोगों को रोका जाता है। पश्चिम बंगाल की बसों में यात्रा करने का एक अच्छा अनुभव यह रहा है कि वहां लोगों को ठूंसा नहीं जाती, प्राय: जितनी सीट उतने ही लोग बैठाए जाते हैं। कोई खुद से खड़े होकर यात्रा करने को राजी हो तो फिर कोई क्या कर सकता है।
गंगासागर यात्रा की असल परीक्षा सागर तट पर पहुंच कर शुरू होती है। वहां रहने के लिए होटल- लॉज जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। कुछ सरकारी रेस्ट हाउस हैं, लेकिन संभवत: आम आदमी वहां तक नहीं पहुंच सकता, क्योंकि वहां वीआईपी और वीवीआईपी की भरमार रहती है। ऐसे में आम लोगों के लिए वहां विभिन्न् संगठनों के शिविर ही रात काटने का सहारा हैं। इसके लिए बहुत जोड़तोड़ करना पड़ता है। वैसे मला स्थल पर लाखों लोग ऐसे भी मिलते हैं, जो ठंड को चुनौती देते हुए पूरी रात खुले आसमान के नीचे गुजारते हैं, लेकिन ऐसा करना खतरनाक है।
'गंगा सागर की यात्रा करने वालों के लिए एक सलाह यह है कि वे जाने से पहले, यात्रा कर चुके किसी व्यक्ति से जस्र्र बात कर लें।"
हावड़ा स्टेशन से गंगा सागर तट तक की यात्रा तीन हिस्सों में पूरी होती है। हावड़ा स्टेशन की दूसरी तरफ स्थित बस स्टैंड से लगातार बसें चलती हैं, जो करीब 100 किमी दूर पहले पड़ाव तक ले जाती हैं। टैक्सी भी उपलब्ध रहता है। बस से उतरने के बाद स्टीमर के जरिए मूरी गंगा नदी पार करनी पड़ती है। इसमें लगभग 40 मिनट का वक्त लगता है। नदी पार करने के बाद करीब 35 किमी का सफर फिर से बस से तय करना पड़ता है। यहां भी टैक्सी मिल जाती है। इस दूरी को तय करने में करीब एक घंटे का वक्त लगता है। कुल मिलाकर हावड़ा से यह सफर करीब 200 किमी का है। हावड़ा से सागर तट तक की यात्रा पूरी करने में करीब सात घंटे का वक्त लग जाता है, क्योंकि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जगह- जगह लोगों को रोका जाता है। पश्चिम बंगाल की बसों में यात्रा करने का एक अच्छा अनुभव यह रहा है कि वहां लोगों को ठूंसा नहीं जाती, प्राय: जितनी सीट उतने ही लोग बैठाए जाते हैं। कोई खुद से खड़े होकर यात्रा करने को राजी हो तो फिर कोई क्या कर सकता है।
गंगासागर यात्रा की असल परीक्षा सागर तट पर पहुंच कर शुरू होती है। वहां रहने के लिए होटल- लॉज जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। कुछ सरकारी रेस्ट हाउस हैं, लेकिन संभवत: आम आदमी वहां तक नहीं पहुंच सकता, क्योंकि वहां वीआईपी और वीवीआईपी की भरमार रहती है। ऐसे में आम लोगों के लिए वहां विभिन्न् संगठनों के शिविर ही रात काटने का सहारा हैं। इसके लिए बहुत जोड़तोड़ करना पड़ता है। वैसे मला स्थल पर लाखों लोग ऐसे भी मिलते हैं, जो ठंड को चुनौती देते हुए पूरी रात खुले आसमान के नीचे गुजारते हैं, लेकिन ऐसा करना खतरनाक है।
'गंगा सागर की यात्रा करने वालों के लिए एक सलाह यह है कि वे जाने से पहले, यात्रा कर चुके किसी व्यक्ति से जस्र्र बात कर लें।"
Friday, October 22, 2010
Monday, February 1, 2010
सबसे ज्यादा IAS व IPS भी बिहारी
राजद के पूर्व सांसद साधु यादव के अनुसार बिहारी अपने काम, मेहनत और हिम्मत के लिए देश में ही नहीं, विदेशों में भी जाने और पहचाने जाते हैं। यदि देश में बिहारी मजदूरों की संख्या ज्यादा है, तो यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सबसे ज्यादा IAS और IPS भी बिहार के ही हैं। पिछले दिनों रायपुर दौरे पर आए श्री यादव ने विभिन्न् मुद्दों पर विचार से बात हुई।
0 छत्तीसगढ़ और बिहार में क्या समानता देखते हैं?
00 दोनों राज्यों के लोग सीधे-सरल, मिलनसार और मेहनती हैं। इसी दम पर उन्हें पहचाना जाता है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति को अभी ज्यादा करीब से देखने का मौका तो नहीं मिला है, लेकिन जो कुछ भी देखा-सुना है। वह काफी कुछ बिहार जैसा ही है।
0 छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भविष्य को लेकर क्या सोचते हैं?
00 छत्तीगढ़ ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस का भविष्य उज्जवल है। यहाँ हुए विधानसभा उपचुनाव और नगरीय निकाय चुनावों के रिजल्ट की हमें जानकारी मिली है। इसमें पार्टी का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा है। धीरे-धीरे लोग वापस कांग्रेस पार्टी की तरफ रूख कर रहे हैं। प्रदेश में अगली सरकार कांग्रेस की ही बनेगी।
0 यहाँ पार्टी के अंदर काफी गुटबाजी है?
00 देखिए कांग्रेस सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी है। इसमें कई बड़े नेता है। सभी के समर्थक भी हैं। उनके सोचने और काम करने का तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन उसे गुटबाजी नहीं कहा जा सकता। सभी की नीति और रीति कांग्रेस के हीत में ही रहती है।
0 राहुल गाँधी की सक्रियता का पार्टी पर क्या असर पड़ रहा है?
00 राहुल जी कांग्रेस के युवा नेतृत्व हैं। उनके मागदर्शन में कांग्रेस का तेजी से जनाधार बढ़ रहा है। इसका असर हमने उत्तर प्रदेश से लेकर दूसरे कई राज्यो में देखा है। उनकी सक्रियता से पार्टी में युवाओं का जुड़ाव और लगाव दोनों बढ़ा है। उन्हीं की कोशिशों का नतीजा है कि कांग्रेस अपने पुराने तेवर में लौट रही है।
0 दलबदल के बाद आप चुनाव हार गए?
00 राजनीतिक जीवन में चुनाव में हार-जीत चलता रहता है। जहाँ तक पिछले चुनाव का सवाल है, तो परिसिमन की वजह से मेरा क्षेत्र बदल गया। हमारी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी के निर्देश पर मैंने चुनाव की तैयार की, वह भी अपने क्षेत्र से करीब 150 किमी दूर जाकर दूसरी सीट से चुनाव लड़ा। कम वक्त और तैयारी के बावजूद हमने अच्छी टक्कर दी।
0 बिहार में कांग्रेस समाप्ति की ओर है?
00 यह आप कैसे कह सकते हैं। बिहार में कांग्रेस तेजी से प्रगति कर रही है। यह केवल दावा नहीं है, बल्कि लोकसभा चुनाव के परिणाम में यह साबित भी हुआ है। तमाम दलों की मौजूदगी के बावजूद इस बार चुनाव में कांग्रस का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है। विधानसभा चुनाव में निश्चित रूप से हम और बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
0 बिहार में इसी वर्ष विधानसभा चुनाव होना है? तैयारी कैसी चल रही है?
00 हाँ, हम और हमारी पार्टी इसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। सदस्यता अभियान के माध्यम से हम अधिक से अधिक संख्या में लोगों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे तो बिहार में कांग्रेस की जड़े पुरानी हैं, लेकिन बीच में परिस्थिति बदल गई थी। अब हालात बदल गए हैं। कांग्रेस फिर से उभर कर आ रही है।
0 बिहार की एनडीए सरकार अच्छा काम कर रही है?
00 विज्ञापन और झूठे प्रचार देखकर बिहार से बाहर बैठे लोग ऐसा कह सकते हैं, लेकिन सच्चाई जानना है तो वहाँ जाकर देखना पड़ेगा। पूरी सरकार एक वर्ग विशेष के कब्जे में हैं। आम लोगों के हित में कोई काम नहीं हो रहा है। सड़क, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग महस्र्म हैं। सड़क और बिजली की स्थिति इतना खस्ताहाल है कि राजधानी के लोग त्रस्त हैं, तो बाकी प्रदेश की स्थिति क्या होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
0 एनडीए के राज में कानून-व्यवस्था स्थिति को आप कैसे देखते हैं?
00 जिस प्रदेश की राजधानी में दिनदहाड़े अपहरण और हत्या की वारदातें हो रही हो, वहाँ के कानून- व्यवस्था के विषय में क्या कहा जा सकता है। पहले लोग कहते थे बिहार में जंगल राज है, लेकिन अब वहाँ महा जंगल राज हो गया है। लोग अपने घरों में सुरक्षित नहीं है। बहु-बेटियों का रास्ता चलना कठिन हो गया है। एनडीए सरकार पूरी तरह फेल हो गई है। उसके कुशासन से जनता त्रस्त है, जिसका परिणाम उसे विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा।
0 बिहार सरकार का आरोप है कि केंद्र से सहयोग नहीं मिलता?
00 यूपीए सरकार सहयोग नहीं करती तो बिहार की एनडीए सरकार आज तक खड़ी नहीं रहती। बाढ़ पीड़ितों की सहायता से लेकर हर समय एनडीए सरकार ने बिहार सरकार की भरपूर सहायता की है। यूपीए सरकार ने विभिन्न् योजनाओं और मदों में करोड़ों स्र्पए वहाँ की सरकार को दिया है, लेकिन यह उनकी अक्षमता है कि वे इस पैसे और सहयोग का लाभ नहीं ले पा रहे हैं।
0 देश के अंदर ही बिहारी बेगाने होते जा रहे हैं?
00 भारत एक लोकतांत्रिक देश है, कश्मीर से लेकर कन्यकुमारी तक देश एक है। बिहारी भी इसी देश के नागरीक हैं। उन्हें भी दूसरे प्रांतो में जाने का अधिकार है। कुछ छोटी मानसिकता के लोग हैं, जो प्रांत और जाति के नाम पर देश को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
0 महाराष्ट्र और हरियाणा सहित कई राज्यों में उन पर हमले हो रहे हैं?
00 मैंने कहा न यह सब छोटी और ओछी मानसिकता के लोगों की कायरना करतूत है। क्या बिहार में दूसरे प्रांतो के लोग नहीं रहते। हम तो बिहार में किसी का विरोध नहीं करते। बिहारी अपनी मेहनत और ईमानदारी के दम पर जीते हैं। कई राज्यों की पूरी अर्थव्यवस्था उन्हीं पर टिकी है। इनमें महाराष्ट्र, हिरयाणा और पंजाब भी शामिल हैं। अगर बिहारी इन राज्यों से हट जाएँ तो ये राज्य ठप हो जाएँगे। विदेशों में भी बिहार का डंका बता है।
0 छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों में होने वाली बड़ी वारदातों में अक्सर बिहारियों गिरोह का नाम आता है? क्या वहाँ केवल अपराधी ही रहते हैं?
00 देखिए आरोप लगाने वाले कुछ भी कह सकते हैं, भारत स्वतंत्र देश है यहाँ हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, इसलिए किसी को कुछ भी बोलने से नहीं रोका जा सकता। हाँ, बिहार का नाम केवल आपराध के लिए लेने वालों को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि देशभर में सबसे ज्यादा आईएएस और आईपीएस अफसर भी उसी बिहार से आते हैं। देश की कई सर्वोच्च संस्थाओं में बिहारी ही प्रशासक हैं।
Thursday, September 10, 2009
मैं हवा हू
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं,
किसी एक का होता नहीं,
अपनी ही मस्ती में, मस्त हो चल देता हू,
राह में मिले जो भी चुपके से उसे छेड़ देता हू,
फिर चल देता हू,
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं,
खुशबू के साथ मिल महका देता हू चमन को,
गर्म हो मौसम कितना भी पल में ठंडक ला देता हू,
मुझे छूओं मत महसूस करो...
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं
न रोको मुझे दीवारों से, न बांधों मुझे बंधनों में,
स्र्कना, बंधना मेरी फितरत नहीं,
इसलिए तो पागल आवारा कहलाता हू,
मेरे पास आने की कोशिश भी न करना,
वरना विलिन हो जाओगे अकाश में,
उस आकाश में जो झूकता तो है पर गिरता नहीं,
आभास होकर भी धरती से कहीं मिलता नहीं,
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं
किसी एक का होता नहीं,
अपनी ही मस्ती में, मस्त हो चल देता हू,
राह में मिले जो भी चुपके से उसे छेड़ देता हू,
फिर चल देता हू,
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं,
खुशबू के साथ मिल महका देता हू चमन को,
गर्म हो मौसम कितना भी पल में ठंडक ला देता हू,
मुझे छूओं मत महसूस करो...
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं
न रोको मुझे दीवारों से, न बांधों मुझे बंधनों में,
स्र्कना, बंधना मेरी फितरत नहीं,
इसलिए तो पागल आवारा कहलाता हू,
मेरे पास आने की कोशिश भी न करना,
वरना विलिन हो जाओगे अकाश में,
उस आकाश में जो झूकता तो है पर गिरता नहीं,
आभास होकर भी धरती से कहीं मिलता नहीं,
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं
Sunday, May 3, 2009
सेवा में मेवा
जनता के सामने हाथ जोड़कर एक-एक वोट की भीख मॉंग रहे, नेता सांसद बनते ही लखपति हो जाएंगे। चुनाव जीतते ही उन्हें मोटी पगार के साथ अन्य सुविधाऍं मिलने लगती हैं। इतना ही नहीं एक बार सांसद बनने मात्र से जीवनभर के आय का एक अच्छा साधन बन जाता है। सांसदों को हर महीने 16 हजार स्र्पए वेतन मिलता है। इसके साथ ही संसदीय क्षेत्र में खर्च करने के लिए उन्हें महीनें में 20 हजार स्र्पए मिलता है। टेलीफोन और मोबाइल की मुफ्त सेवा के साथ महज 150 स्र्पए की मासिक भुगतान कर देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में इलाज कराने की सुविधा भी मिल जाती है। सांसदों को हर माह सोलह हजार रुपये वेतन मिलता है। सदन का कोई सत्र अथवा संसद की किसी समिति की कोई बैठक में शामिल होने के लिए एक हजार स्र्पए दैनिक भत्ता दिया जाता है। प्रत्येक संसद सदस्य 20,000 रुपये प्रति माह की दर से कार्यालय-व्यय भत्ता मिलता है जिसमें से चार हजार रुपये लेखन सामग्री मदों पर होने वाले व्यय, दो हजार रुपये पत्रों की फ्रैंकिंग पर होने वाले व्यय शामिल है।सांसदों को दिल्ली में सरकारी आवास उपलब्ध कराया जाता है। आवासों का आवंटन लोक सभा की आवास समिति की आवास उप समिति द्वारा किया जाता है। यदि किसी सांसद को उसके अनुरोध पर आवास के रूप में बंगला का आबंटन किया जाता है तो वह संपूर्ण सामान्य लाइसेंस शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। प्रत्येक सदस्य के दिल्ली में आबंटित आवास पर पहली हर वर्ष 1 जनवरी से चार हजार किली पानी तथा 50,000 यूनिट तक बिजली (25000 यूनिट लाइट मीटर पर तथा 25,000 यूनिट पावर मीटर पर अथवा दोनों को मिलकार) नि:शुल्क दिया जाता है। यह सुविधा दिल्ली में निजी आवास में रहने वाले सदस्य को भी दी जाती हैं।यात्रा भत्ता व सुविधाएंसभी सांसदों को वातानुकूलित प्रथम श्रेणी अथवा एक्जिक्यूटिव श्रेणी का एक नि:शुल्क अहस्तांतरणीय रेल पास जारी किया जाता है, जिससे वे भारत में किसी भी ट्रेन से किसी भी समय यात्रा कर सकते हैं। सहचर के लिए द्वितीय श्रेणी का एक पास भी दिया जाता है। हाई यात्रा की स्थिति में यात्रा के लिए वायुयान के टिकट का किराया दिया जाता है। सड़क मार्ग से यात्रा की स्थिति में 13 स्र्पए प्रति किलोमीटर के हिसाब से भत्ता दिया जाता है। इसके अतिरिक्त सांसदों को सत्र/अंतरसत्रावधि के दौरान पति या पत्नी अथवा कितनी ही संख्या में अपने सहचरों या संबंधियों के साथ एक वर्ष में 34 हवाई यात्राएं करने की सुविधा प्रदान की गई है। पति, पत्नी को सुविधाऍं सांसद के गृह निवास स्थान से दिल्ली तक आने जाने के लिए प्रत्येक सत्र के दौरान एक बार तथा बजट सत्र के दौरान दो बार लेकिन एक वर्ष में 8 बार नि:शुल्क वातानुकूलित प्रथम श्रेणी अथवा एक्जिक्यूटिव श्रेणी में किसी ट्रेन यात्रा। वायुमार्ग द्वारा की जाती है तो विमान किराए के बराबर धनराशि। सोफा कवर और पर्दे की हर तीन महीने में धुलाई, टिकाऊ फर्नीचर के संबंध में 60,000 रुपये मूल्य तक और गैर-टिकाऊ फर्नीचर के संबंध में 15000 रुपये मूल्य तक की विद्यमान वित्तीय सीमा के भीतर फर्नीचर और इसमें किए गए किसी सुधार या परिवर्धन या फर्नीचर, विद्युत उपकरण और अन्य सेवाओं के रूप में दी गई कोई अतिरिक्त सेवा के कारण किराए में 25 प्रतिशत की छूट शामिल है। वाहन खरीदने की सुविधा सांसद को इच्छित वाहन क्रय करने के लिए एक लाख रुपये या वाहन का वास्तविक मूल्य,जो भी कम हो, बतौर अग्रिम दिया जाता है। इसकी वसूली 11.5 प्रतिशत ब्याज दर से की जाती है।
Friday, April 10, 2009
लोगों को जगाने आग पर चल रहे डीजीपी विश्वरंजन
छत्तीसगढ़ पुलिस ने अंधविश्वास को दूर करने के लिए मुहिम शुरू किया है। अभियान को सफल बनाने के लिए पुलिस 20 हजार स्व्यं सेवकों की फौज तैयार कर रही है, जो प्रदेश के कोने-कोने में जाकर लोगों को जागृत करेंगे। फिहलहाल इन स्वयं सेवकों के प्रशिक्षण का दौर चल रही है। लंबी छुट्टी पर होने के बावजूद डीजीपी विश्वरंजन खुद इसकी कामन संभाल रहे। अंधविश्वास के खिलाफ समाज को खड़ा करने वे खुद नंगे पैर आग पर चल रहे हैं। सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में उन्होंने रायगढ़ में यह कारनामा किया। छत्तीसगढ़ में महिलाओं पर टोनही (डायन) का आरोप लगाकर उसे प्रताड़ित करने की सैकड़ों घटनाऍं हो चुकी हैं। सरकार द्वारा इसके खिलाफ कानून बनाए जाने के बावजूद महिलाओं महिलाओं को प्रताड़ित करने वाले समाज के ठेकेदारों पर कोई असर नहीं पड़ा। इसे देखते हुए डीजीपी विश्वरंजन ने जनजागरण की मुहिम शुरू की है। राजय पुलिस ने वर्ष 2009 में टोनही प्रकरणों की दर को शून्य पर स्थिर करने तथा अंधविश्वास आधारित अपराधों के नियंत्रण के लिए विशेष अभियान प्रारंभ किया है। इसके लिए पूरे राज्य में टास्क फोर्स का गठन किया जा रहा है। इसी के तहत रायगढ़ में कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें दो सौ से अधिक महिलाओं ने भी जादू-टोने के ट्रिक्स सीखे। दहकते अंगारे पर चलने के ट्रिक्स को करने में झिझक रहे थे। इसकी वजह से डीजीपी को खुद आगे आना पड़ा। उनके आग पर चलने के बाद वहॉं मौजूद सभी लोगों ने एक-एक कर इस ट्रिक्स को किया। विश्वरंजन ने बताया कि अंध विश्वास से जुड़ी घटनाओं को रोकने के लिए वृहद स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। इसमें समाज से जुड़े लोगों के साथ पुलिस अधिकारियों और चयनित स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं की सहायता ली जा रही। गॉंव-गॉंव में कार्य करने के लिए तैयार किए जा रहे स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं को चरणबद्ध तरीके से प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रशिक्षण के लिए देशभर के विशेषज्ञों की सहायता ली जा रही है। वाह...वाही छत्तीसगढ़ पुलिस की इस मुहिम की देशभर में सराहना हो रही है। विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन नागपुर के अध्यक्ष और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता उमेश चौबे ने इस पहल को देश में अनूठा और अन्य राज्यों के लिए प्रेरणादायक बताया है। उन्होंने कहा कि इस मुहिम को शुरू करने वाले डीजीपी विश्वरंजन का समिति की तरफ से नागपुर में नागरिक अभिनंदन किया जाएगा। आगे आए दो और राज्य प्रदेश पुलिस की मुहिम में सहयोगी बनने यहॉं आए बिहार अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य भंते बुद्धप्रकाश और देशभर में अंधविश्वास आधारित सामाजिक अपराधों के खिलाफ मुहिम चलाने वाली संस्था अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने छत्तीसगढ पुलिस के इस अभियान की कार्ययोजना को बिहार एवं महाराष्ट्र सरकार व पुलिस द्वारा लागू कराने का विश्वास जताया है ।
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