Thursday, September 10, 2009

मैं हवा हू

मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं,
किसी एक का होता नहीं,
अपनी ही मस्ती में, मस्त हो चल देता हू,
राह में मिले जो भी चुपके से उसे छेड़ देता हू,
फिर चल देता हू,
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं,
खुशबू के साथ मिल महका देता हू चमन को,
गर्म हो मौसम कितना भी पल में ठंडक ला देता हू,
मुझे छूओं मत महसूस करो...
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं
न रोको मुझे दीवारों से, न बांधों मुझे बंधनों में,
स्र्कना, बंधना मेरी फितरत नहीं,
इसलिए तो पागल आवारा कहलाता हू,
मेरे पास आने की कोशिश भी न करना,
वरना विलिन हो जाओगे अकाश में,
उस आकाश में जो झूकता तो है पर गिरता नहीं,
आभास होकर भी धरती से कहीं मिलता नहीं,
मैं हवा हू, जो स्र्कता नहीं, कभी थमता नहीं

1 comment:

36solutions said...

सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति, आभार.